किसान आन्दोलन के तीन वर्ष -विश्व की पहली अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी

 किसान आन्दोलन के तीन वर्ष पर 

विश्व की पहली अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कविसम्मेलन 

ओस्लो, 2 दिसम्बर।
नार्वे से भारतीय किसान आन्दोलन के तीन बरस पर विश्व की पहली डिजिटल अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ जिसका आयोजन भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम ने किया था।  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे डॉ. सुधीर कुमार शर्मा एवं मीडियाकर्मी एवं लेखक बलराम मणि त्रिपाठी एवं अध्यक्षता की साहित्य त्रिवेणी साहित्यिक पत्रिका के संपादक डॉ. कुँअर वीर सिंह मार्तण्ड जी ने और सस्वर वाणी वन्दना से कार्यक्रम की शुरुआत की प्रमिला कौशिक ने।  
संस्था के अध्यक्ष सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक ने स्वागत करते हुए कहा, 
"किसान अन्नदाता है पर उसे अपनी लोकतान्त्रिक मांगों को मनवाने के लिए आन्दोलन करना पड़ रहा है।  जब आज सरकार का पूँजीपतियों की तरफ झुकाव है और श्रमिक कानूनों में परिवर्तन करके उनके अधिकार कम किये गए हैं। सरकार ने  वायदे पूरे नहीं किये हैं। कविता की पंक्तियाँ हैं:
किसान देश को मजबूत कर रहा,
सरकार के लिए वह बाहरी हो गया, 
लोकतन्त्र का चौथा खम्बा जब गोदी हो गया, 
किसान आन्दोलन आवाज बन गया।
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अन्नदाता यदि सड़क पर आया नहीं होता,
देश पूंजीपतियों का गुलाम हो गया होता।
जब से सरकारी मशीनरी का 
दुरूपयोग बढ़ा है 
संसद का कार्य सड़कों पर हो रहा।
अन्नदाता को नमन हमें जागरूक कर रहा,
देश में एक नया इतिहास रच रहा।"
सुरेशचन्द्र शुक्ल ने आगे कहा, "साहित्यकारों  और पत्रकारों का दायित्व है कि वह जनता की आवाज बने, उन्हें जगह दे, न कि उन्हें बाहरीपन का अहसास कराये।
लोकतन्त्र की जो मशाल लेकर चलें उन्हें हम सहयोग दें और लोकतंत्र को मजबूत करें।  विपक्षी दलों की भूमिका अहम हो रही है, जबकि सरकारी मशीनरी जैसे चुनाव आयोग, सीबीआई और ईडी आज केन्द्र सरकार के पक्ष में और जनता से पक्षपात का रवैया अपना रही है वहां किसान आंदोलन लोकतंत्र के लिए संजीवनी है।  26 से 28 नवम्बर 2023 तक चंडीगड़ और पूरे देश में किसानों ने तीन दिनों तक पुनः आंदोलन किया और अपनी मांगों को दोहराया। 
यह कवि सम्मेलन पूरी तरह से भारत में किसान आंदोलन को समर्पित है। कुछ विपक्षी नेता मिसाल बन रहे हैं महुआ मोइत्रा और राहुल गाँधी जैसे नेता जनता की आवाज बन रहे हैं।  यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है।"  आखिर में उन्होंने  अपनी स्वरचित कविता की पंक्तियाँ पढ़ते हुए किसान आंदोलन में शहीद हुए सात सौ किसानों को श्रद्धांजलि दी।
"भारत जोड़ो यात्रा ने कमाल कर दिया 
जनता की आवाज ने धमाल कर दिया।
मीडिया मौन है जनता की आवाज पर,
जन नेता  जनता की आवाज बन गये।
700 किसान आन्दोलन में शहीद हो गए,
देश में लोकतंत्र की मशाल बन गए।
कोटि-कोटि नमन किसान  शहीदों को 
भारत के लोकतंत्र को संजीवनी दे गये।"

अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी और कवि सम्मेलन में विचार व्यक्त करने वाले और कवितापाठ करने वाले थे भारत से प्रसिद्ध लेखक डॉ. कुँअर वीर सिंह मार्तण्ड कोलकाता,  लेखक और शिक्षाविद अमरजीत राम प्रयागराज, प्रसिद्ध मीडियाकर्मी बलराम कुमार मणि त्रिपाठी एवं सूरज के रंग के रचनाकार शशि पराशर, ममता कुमारी एवं चाँद  पर पहरा की रचनाकार प्रमिला कौशिक दिल्ली, डॉ. इलाश्री जायसवाल नोएडा, डॉ. रश्मी चौबे गाजियाबाद, समालोचक एवं शिक्षाविद डॉ. ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी कबीर नगर, जसवीर सिंह बागपत, डॉ. फरहत उनीसा विदिशा, छत्तीसगढ़ के संपादक सुधीर कुमार शर्मा रायपुर, पर्यावरण विद डॉ. अर्जुन पाण्डेय अमेठी, डॉ. सुषमा सौम्या जी ने पहले मृदा वैज्ञानिक एवं कवि स्व.विप्लव जी की रचनायें पढ़ीं बाद में अपनी स्वरचित ग़ज़ल एवं सस्वर गीत सुनाये।  
विदेश से काव्यपाठ करने वालों में  सर्वश्री डॉ. राम बाबू गौतम अमेरिका,  शिरोमणि साहित्यकार डॉ. मोहन सपरा कनाडा, अंकित पाण्डेय नेपाल और नार्वे से सुरेशचन्द्र शुक्ल नार्वे ने सस्वर कवितायें सुनायीं।  सभी रचनाओं को बहुत पसन्द किया गया।
डॉ. सुधीर कुमार शर्मा जी ने सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक के काव्यसंग्रह मिट्टी के देवता को अपने समय की किसान विमर्श की श्रेष्ठ पुस्तक बताया।  आगामी संगोष्ठी 6 दिसम्बर को आयोजित होगी जो नार्वे और स्वीडेन से दिए जाने वाले शान्ति एवं साहित्य के नोबेल पुरस्कार पर आधारित होगी।
      -  संगीता शुक्ल, ओस्लो